शब्द के संसार को अब मौन होने दो॥
दीप जीवन का सजा है चाँदनी बन
ताप के अहसास को कुछ सघन होने दो।
शब्द के संसार को अब मौन होने दो॥
अधर की मुस्कान आँखों की चमक को
सपन सा सुकुमार कोई बीज बोने दो।
शब्द के संसार को अब मौन होने दो॥
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रचयिता : समणी सत्यप्रज्ञा
रचयिता : समणी सत्यप्रज्ञा
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