ये खबरें उड़ाने वालों का कहर ही था
हर दिल में उबलता हुआ ज़हर ही था
दो पल को ढूंढा नहीं सच को कभी
बेताब दुश्मनी को सारा शहर ही था
कुछ दोस्त थे मेरे दुश्मनों में हुए
लगा रहा बहस में शामो-दोपहर ही था
ना तुम मुझे सुनोगे ना मैं तुम्हें सुनूंगा
यूं हम को लड़ के जाना ठहर ही था
दोनों बराबरी पे रक्खे कभी ना तूने
परचम बगा़वतों का जाना फ़हर ही था
-Gaurav Singhal, sometime around 2017-18
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