Sunday, June 6, 2021

यह वाकया ब्लॉग पर डालने लायक था

 सॉफ्टवेयर के काम के सिलसिले में डाटा अपलोडिंग का काम चल रहा था। हमारी टीम के एक सदस्य पिछले हफ्ते 2 दिन की छुट्टी पर थे और इतवार की छुट्टी तो उन्होंने ली ही थी... तो मैंने उनसे कहा कि भाई आज इतवार को वह काम करके इसको कंपनसेट करें।


अब इस तरह के जुल्मों सितम पर व्हाट्सएप ग्रुप में एक कमेंट कुछ इस तरह का आया... गैरों पे करम, अपनो पे सितम, ए गौरव सर...


तो मेरा रिप्लाई कुछ इस तरह का गया कि हे सज्जन! आपके अंदर का शायर भले ही जाग गया हो परंतु यह कविता कुछ इस तरह से लिखनी चाहिए थी, तो अधिक प्रभावी हो जाती.. :-) (और पसंद आने पर शायद छुट्टी भी मिल जाती)


ग़ैरों पे करम 

अपनो पे सितम 

गौरव मोहतरम 

हम गए सहम

हो कुछ तो रहम 

कि ऐसा जुलम

कि ऐसे जख़म

ना सह लें हम

मिटा दो भरम

लगा दो मरहम

कुछ तो नरम

कहो ना सनम

दूर हो ग़म

दर्द हो कम

शिकवा भी थम

जाए जो हम

करें फ़राहम

आपका करम..

आपका करम!!

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जिंदगी का युद्ध कैसे लड़ा गया और जीता गया या हारा गया यह तो बातें अलग रही पर हाॅं! यही लम्हे जीवन को यादगार बनाते हैं!! :-)

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