Sunday, April 29, 2007

Nazm by Nida Fazli Sahab...

मुहब्बत

वो दोनो,
बहुत गरीब हैं.
उनका कोई घर है ना ठिकाना,
लेकिन छः रोज़ मुसलसल,
अलग-अलग मकानों में
मेहनत-मजदूरी करने के बाद
जब वो
इतवार कि शाम को
एक-दूसरे से मिलने आते हैं
तो, सारे शहर को अमीर बना जाते हैं.



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